नोटबंदी के बाद 6 साल में देश में 83% बढ़ी नकदी
कैश इकॉनमी पर कोई असर पड़ेगा
साल 2016 में जब सरकार ने नोटबंदी की थी तो उसका मुख्य मकसद काले धन को समाप्त करने के साथ-साथ डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देना भी था। सरकार की सोच थी कि डिजिटल लेन-देन बढ़ने से नकदी का चलन कम होगा और इससे काले धन की अर्थव्यवस्था हतोत्साहित होगी। बेशक, डिजिटल लेन-देन बढ़ा है, लेकिन इससे नकदी के चलन में कमी आई हो, ऐसा संबंध नहीं दिखता है। आंकड़े बताते हैं कि एक तरफ डिजिटल लेनदेन को लेकर पिछले 5 सालों में जबरदस्त तेजी आई है, तो वहीं नकदी के चलन में भी इजाफा हो रहा है। अब सरकार ने 2 हजार रु. के नोट को वापस ले लिया है। लेकिन इसका कैश इकॉनमी पर कोई असर पड़ेगा, ऐसा लगता नहीं है।
ऑल टाइम हाई पर नकदी का चलन
आरबीआई के अनुसार 23 दिसंबर 2022 तक देश में नकदी का चलन 32.42 लाख करोड़ रुपए का था, जो ऑल टाइम हाई था। नोटबंदी से ठीक पहले यानी 4 नवंबर 2016 की स्थिति को देखें तो उस समय 17.74 लाख करोड़ रुपए सर्कुलेशन में थे। उस समय से तुलना करें तो कैश के सर्कुलेशन में 83 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है, यानी नोटबंदी का एक मकसद पूरा नहीं हो पाया।
क्यों बढ़ा नकदी का चलन ?
कोरोना महामारी से उपजी अनिश्चितता से लोगों में नकदी रखने की प्रवृत्ति बढ़ी है। लॉकडाउन के पूरी तरह हटने के बाद एकाएक तेजी से निकली मांग यानी ‘पेंट अप डिमांड’ से भी कैश सर्कुलेशन को बढ़ावा मिला। करेंसी सर्कुलेशन के साथ-साथ कैश टु जीडीपी रेश्यो (कैश-जीडीपी अनुपात) के आंकड़े भी इस बात की तस्दीक करते हैं। 2020-21 में करेंसी सर्कुलेशन में 4 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का इजाफा हुआ, जबकि कैश टु जीडीपी रेश्यो बढ़कर 14.5 फीसदी तक ऊपर चला गया। ताजा आंकड़ों के अनुसार बीते वित्त वर्ष (2022- 23) के दौरान कैश-जीडीपी अनुपात घटकर 12.4 फीसदी पर जरूर आ गया, लेकिन यह अब भी नोट बंदी के पहले के स्तर से ज्यादा है।
‘नकदी पर क्या कहती हैं विभिन्न रिपोर्ट्स? ‘मैकिन्से ग्लोबल पैमेंट्स रिपोर्ट’ के अनुसार भारत में वॉल्यूम के हिसाब से
लगभग 89% लेनदेन नकदी में होता है। भारत में ई-रिटेल प्लेटफॉर्म पर 65 फीसदी कारोबार कैश ऑन डिलिवरी (सीओडी) से होता है। टियर 1 और टियर 2 शहरों में तो 80% तक ऑर्डर सीओडी पर किए जा रहे हैं। ई-कॉमर्स कंपनियां अगर सीओडी को हतोत्साहित करती हैं तो वॉल्यूम खोने का जोखिम है। • विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित ग्लोबल फाइंडेक्स के निष्कर्ष भी बताते हैं कि देश की 22 फीसदी वयस्क आबादी के पास कोई बैंक खाता नहीं है, जबकि सिर्फ 35 फीसदी वयस्कों ने 2021 में डिजिटल लेनदेन के लिए अपने बैंक खातों का इस्तेमाल किया। भारत में लेनदेन को लेकर भी लैंगिक असमानता है। इसी रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि डिजिटल लेनदेन के मामले में पुरुषों के मुकाबले 13 फीसदी कम महिलाएं रुचि लेती हैं।
अप्रैल 2022 में प्रकाशित ग्रामीण वाणिज्य नेटवर्क वनब्रिज (1Bridge) द्वारा की गई फील्ड रिसर्च के अनुसार मात्र 3 से 7 फीसदी ग्रामीण आबादी लेनदेन के लिए किसी भी यूपीआई प्लेटफॉर्म का सक्रिय रूप से इस्तेमाल करती है।
कहां सबसे ज्यादा नकदी का इस्तेमाल?
रियल एस्टेट सेक्टर.…
लोकल सर्कल्स द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि रियल एस्टेट सेक्टर के लेनदेन में नकदी का काफी इस्तेमाल हो रहा है। सर्वेक्षण में शामिल 8 फीसदी उत्तरदाताओं ने माना कि उन्होंने प्रॉपर्टी के लेनदेन में 50 फीसदी से भी अधिक नकद राशि का भुगतान किया था। तकरीबन 15 फीसदी उत्तरदाताओं ने लेनदेन की राशि का 30-50 फीसदी नकद में भुगतान किया था, 13 फीसदी ने 10-30 फीसदी नकद भुगतान किया था और शेष 8 फीसदी ने कुल कीमत का 10 फीसदी तक नकद में भुगतान किया था। कुल मिलाकर 44 फीसदी उत्तरदाताओं ने प्रॉपर्टी सौदों में नकद भुगतान की बात मानी। हालांकि माना जा सकता है कि बहुत सारी नकदी काले धन के रूप में इस्तेमाल में लाई गई होगी।
फूड सेक्टर….
लोकल सर्कल्स के ही सर्वे के अनुसार नकदी का सबसे ज्यादा इस्तेमाल लोग खान-पान और किराने के सामान में करते हैं। इसके मुताबिक इसमें 76 फीसदी लोग नकदी का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि इसमें रियल एस्टेट के विपरीत छोटे-छोटे भुगतान होते हैं, लेकिन रिसर्च एंड मार्केट के अनुसार यह सेक्टर कुल मिलाकर 611 अरब डॉलर (50, 480 करोड़ रुपए) का है। इसमें ऑनलाइन मार्केट का • हिस्सा केवल 2.3 फीसदी है। ऐसे में छोटे-छोटे भुगतान होने के बावजूद नकदी का सबसे ज्यादा लेनदेन इसी सेक्टर में होता है।
केश के साथ डिजिटल भी
नकदी अब भी बादशाह है, लेकिन यह भी
एक हकीकत है कि देश में डिजिटल लेन-
देन में अच्छी-खासी बढ़ोतरी हुई है…
100 गुना बढ़ा डिजिटल लेनदेन सरकार की तरफ से आए आंकड़ों के मुताबिक डिजिटल लेनदेन की संख्या में पिछले नौ वर्षों में 100 गुना इजाफा हुआ है। वित्त वर्ष 2013-14 में जहां महज 127 करोड़ डिजिटल लेनदेन हुए। थे. वहीं यह आंकड़ा 2022-23 में (23 मार्च 23 तक) बढ़कर 12,735 करोड़ तक जा पहुंचा है।
यूपीआई सबसे पसंदीदा
यूपीआई डिजिटल लेनदेन का सबसे लोकप्रिय जरिया है। कुल डिजिटल लेनदेन (वॉल्यूम) में यूपीआई का हिस्सा बढ़कर तकरीबन 73 फीसदी हो गया है। वित्त वर्ष 2016-17 में यूपीआई के जरिए 1.8 करोड़ लेनदेन हुए थे, जो 2022-23 में बढ़कर 8,375 करोड़ तक जा पहुंचे हैं।
एटीएम से कैश विड्रॉल घटा
करेंसी की खुदरा मांग में यूपीआई की हिस्सेदारी बढ़कर 83% तक हो गई है, जबकि एटीएम से नकद निकासी का हिस्सा घटकर 17% रह गया है। 2016-17 में एटीएम से कैश विड्रॉल (वैल्यू) नॉमिनल जीडीपी का जहां 15.4% था, वहीं 2022-23 में घटकर 12.1% रह गया।